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भगवान कौन हैं ?

Who is God ?

This is an infinite positive energy which motivate us to do our work successfully.

भगवान कौन हैं ?

एक अनन्त सकरात्मक ऊर्जा जो हमारे कार्य को फलित करने हेतु निरन्तर हमे प्रोत्साहित करती है और हमे कभी हारने नही देती ।

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By Amit Chandrawanshi

हमारी धरती… (कविता)

​धरा वस्त्र थे ये पेड़, जल था आभूषण ।
कर दिया सब खत्म, लाकर ये प्रदूषण॥

धरती की सुंदरता, थी उसकी हरियाली।
छीनी नासमझों ने, पाने क्षणिक खुशहाली॥

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पर्यावरण पर नारे (Slogans on Environment)

​1.काटो पेड़ बहाओ पानी,
   मौत है फिर जरूर आनी।

2.कोई काम न आएगी दुआ,
   जो जल-पेड़ों का नाश हुआ।

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मैं तब तक नादान था…

मैं तब तक नादान था कि जब तक ये जमाना नादान था।

पर यूँ ही अचानक हिंसक बन जाना न मेरा कोई अरमान था॥

द्वारा – अमित चन्द्रवंशी

पानी की कमी(दोहा)

धाकड़ अमित दोहा :

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अमित नीर चहुँ ओर था, खूबहि दियो बहाय।
भू जलहि खत्म होय जो, तब मानव पछताय॥

कविअमित चन्द्रवंशी

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सूखा पेड़ (कुण्डलिया)

कुण्डलिया :

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खड़ा हुआ था मुस्कराता, हरा भरा वो पेड़।
गंजा मालूम वो पड़े, किसने की ये छेड़॥
किसने की ये छेड़, महंगी बहुत पड़ेगी।
जो सजा दीन आज, उससे बदतर मिलेगी॥
कहे ‘अमित‘ कविराय, बिन पेड़ जीवन उखड़ा।
तरु है धरा जान, न त मौत द्वार तू खड़ा॥

कविअमित चन्द्रवंशी

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नीर चहुँ ओर था (दोहा)

हनुमानजी की पूँछ में आग क्यों नहीं लगी?

बेचारा रावण (कुण्डलिया)

दहेज प्रथा की वास्तविकता(Reality of Dowry System)

बिन मौसम मौसमों का मजा लीजिए(मुक्तक)

मुक्तक :
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बिन मौसम मौसमों का मजा लीजिए,
और यूँ ही प्रदुषण में बढोतरी कीजिए।
वो दिन दूर नहीं जब खाने पीने को कुछ न होगा,
बस मौत से पहले ही दफन होने की अपनी मंजूरी दीजिए॥
रचयिताअमित चन्द्रवंशी

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नव वर्ष संदेश

बेचारा रावण(कुण्डलिया)

आजकल के बच्चे(Modern poem)

एक मुस्कान (कविता)

एक मुस्कान

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जो काम कर सकती है एक मुस्कान ।
उसका आपको नहीं है जरा सा भी भान॥
एक राजा से लेकर रंक के लिए समान ।
बिन मोल मिले है ये अनमोल मुस्कान ॥ 

मनमोहक निश्छल मीठी है मुस्कान ।
जिस पर तो निर्जीव भी होय कुर्बान ॥

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वक्त(मुक्तक)

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वक्त बर्बाद करने की ‘अमित‘ ने आदत नहीं बनाई।
और वक्त बर्बाद करने की वक्त से मोहलत भी नहीं पाई॥
जो एक बार वक्त बर्बाद हुआ ‘अमित‘ कभी भूल से,
तो वक्त ने भी फिर कहाँ बर्बाद करने में देर लगाई॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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सर्दी की दस्तक (कविता)

सर्दी  की दस्तक(कविता)

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चलन लगे ठंडी सी पवन।
सिहर उठे उससे सकल बदन॥
सुबह शाम निकल नहीं पाते ।
भागन धूप में सबहि चाहते ॥

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