धरा वस्त्र थे ये पेड़, जल था आभूषण ।
कर दिया सब खत्म, लाकर ये प्रदूषण॥
धरती की सुंदरता, थी उसकी हरियाली।
छीनी नासमझों ने, पाने क्षणिक खुशहाली॥
अब देखो मौसम बदले, फैलें नई-नई बीमारी।
अब तो संभल जाओ, समझो जिम्मेदारी॥
ऐसे कैसे बने लालची, बढ़ा ली है आफत।
कहाँ गई वो समझदारी, तुमको तो है लानत॥
अपने आने वाले बच्चों को, थोड़ा तो करो प्यार।
पेड़ लगाकर बन जाओ तुम, अब तो समझदार॥
जागरूक होने में ही है, आज सबकी भलाई।
वर्ना बचा न पाओगे, चाहे कितनी हो कमाई॥
कवि – अमित चन्द्रवंशी
Bahut khub…👍👍
LikeLiked by 1 person
Tnx so much Maithily Ji…
LikeLike
वाह वाह!
LikeLiked by 1 person
आभार…
LikeLike
Eye opener….beautifully written
LikeLiked by 1 person
Thanks so much Rohit Ji for your precious comment…
LikeLiked by 1 person