श्री रामजी जिस दिन लौटे थे अयोध्या नगरी ।
जनता खुशी से नाच उठी थी उस पल सबरी ॥
नगर-नगर ग्राम-ग्राम हर घर-घर दीप जला ।
खुशी दौर नभ थल जल पाताल धरा स्वर्ग चला॥
उठा हर घर-घर चमक बुराई सारी मिट गई ।
नव रंग अब छाने लगा धरा मंगलमय भई ॥
देव नर मुनि जीव-जड़ सब झूम खूबहि उठही ।
बाल -युवा- वृद्ध -पंछी सब प्रभु गुणगान गावही ॥
तरु -फूल -फल- पानी- शाखा -जड़ प्रभु नाम जपही ।
मधुर स्वर हर कण- कण से पल- पल फूटन लगही ॥
शीतल सुगंधित मंद पवन सुख रस इत-उत बहावहीं।
नभ घन वसन पहन दे शीतलता छाया अति बनावहीं॥
हर घर -घर गली -गली फैले दीप दीप दीपावली ।
रौनकता -चहलता -नवीनता उमंग हवा जगह- जगह चली ॥
आनंदमय -मंगलमय -रसमय पावन वातावरण दिशि- दिशि समाही ।
दिवस कार्तिक मास अमावस्या अमित खुशहाली प्रकाश देत गवाही ॥
कवि – अमित चन्द्रवंशी
Also visit our YouTube channel.
Also visit my Facebook Page
Also read in Hinglish.
यह भी पढ़ें :
बेचारा रावण(कुण्डलिया)
हनुमानजी की पूँछ में आग क्यों नहीं लगी?
मैं आत्महत्या क्यों करूँ? (कविता)
नेता खड़ा पिपासा (मुक्तक)
दोहे
आजकल के बच्चे (कविता /Modern Poem)