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जहर पीकर भी कैसे अमर हुआ नहीं जा सकता… (मुक्तक)

Shiv Shankar, Bhole Baba

कौन कहता है कि मुर्दे में जान को लाया नहीं जा सकता।
और असंभव को भी कभी संभव बनाया नहीं जा सकता॥
उन भोले बाबा से पूछो कि काज कैसे बनाया जाता है;
कि जहर पीकर भी कैसे अमर हुआ नहीं जा सकता॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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Protected:   श्रीराम जी भी मनाते थे दीपावली

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दीप दीप दीपावली

श्री रामजी जिस दिन लौटे थे अयोध्या नगरी ।
जनता खुशी से नाच उठी थी उस पल सबरी ॥
नगर-नगर ग्राम-ग्राम हर घर-घर दीप जला ।
खुशी दौर नभ थल जल पाताल धरा स्वर्ग चला॥

उठा हर घर-घर चमक बुराई सारी मिट गई ।
नव रंग अब छाने लगा धरा मंगलमय भई ॥

देव नर मुनि जीव-जड़ सब झूम खूबहि उठही ।
बाल -युवा- वृद्ध -पंछी सब प्रभु गुणगान गावही ॥

तरु -फूल -फल- पानी- शाखा -जड़ प्रभु नाम जपही ।
मधुर स्वर हर कण- कण से पल- पल फूटन लगही ॥

शीतल सुगंधित मंद पवन सुख रस इत-उत बहावहीं।
नभ घन वसन पहन दे शीतलता छाया अति बनावहीं॥

हर घर -घर गली -गली फैले दीप दीप दीपावली ।
रौनकता -चहलता -नवीनता उमंग हवा जगह- जगह चली ॥

आनंदमय -मंगलमय -रसमय पावन वातावरण दिशि- दिशि समाही ।
दिवस कार्तिक मास अमावस्या अमित खुशहाली प्रकाश देत गवाही ॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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दोहे

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धनतेरस मुक्तक

धनतेरस मुक्तकतन   बलिष्ठ   हो  मन  हर्षित  हो ।
सब   मनोंकामनायें  फलित   हो॥
रहे ‘अमित’ यम-धन्वन्तरि आशीष,
खुशी धन दीप सदा प्रज्वलित हो॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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धनतेरस की पूर्ण कथा जानने की लिए यहाँ click करें

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मंगलकर्ता विघ्नहर्ता (दोहा)

Shree Ganesha Doha by Amit Chandrawanshiधाकड़ अमित दोहा :

मंगल करण विघ्न हरण, करें आपका ध्यान ।
प्रथम आरती आपको, हो पूरण वरदान॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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रक्षाबंधन  (दोहा)

धाकड़ अमित दोहा :

अति पावन स्नेह बंधन, रक्षा का अनमोल।
भाई – बहन रिश्तों में, और मिठास दे घोल॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी

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नव वर्ष संदेश

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नया वर्ष शुरू हो गया है और क्या आप हर बार यूँ ही नव वर्ष मनाओगे? 
   मैं आपको मात्र विक्रम संवत् २०७२ के नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ही दे सकता हूँ क्योंकि बधाई तो तब देता जब नव वर्ष की शुरुआत बड़े ही उत्तम ढंग से हुई होती ।परन्तु नव चेतना, नव उल्लास, नव समय इत्यादि को लाने वाला जब असमय ही ओलावृष्टि के साथ कष्टदायक पीड़ा को लेकर आगमन करे तब कदाचित आप इसे सुखद नहीं कह सकते । नव वर्ष सदैव खुशियों को लाने वाला है पर उसके रंग में भंग उत्पन्न करके आपने सारा स्वरूप बिगाड़ दिया है । अब जिम्मेदारी आपकी ही है कि इस शुभ अवसर पर संकल्प लें और इस संसार के विनाश के कारकों को ठीक उसी प्रकार निकाल फेंकिए जिस प्रकार एक तपस्वी संसार की मोह माया को निकाल फेंकता है । 
      आपके पापों का फल अकेले अन्नदाता ही को क्यों चुकाना पड़े । आप पर तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा परंतु जिसने दिन रात मेहनत की है उसके हृदय का हाल तो पूछिए, मानो मंदराचल के शिखर से उसके उर को विदीर्ण कर दिया गया हो । लेकिन अभी नहीं तो शीघ्र ही आपको इसका परिणाम भुगतना होगा । प्रदुषण को बढ़ाने के आप वो सारे कृत कर रहे हो जिन्हे आप को नहीं करना चाहिए था बल्कि आप को वृक्षों को अधिक से अधिक संख्या में लगाना चाहिए था पर आप तो इसके विपरीत कर्म कर रहे हो।
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होली कविता (अमित आज तू लोगों को. ..)

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अमित आज तू लोगों को , रंग कैसे लगा पायेगा।
जो रंग तू लेकर आयेगा , वही लेकर लौट जायेगा ॥

अपने सच्चे हितैषियों को , रंग तू कैसे लगायेगा ।
लम्बे अरसे से जो न मिला, अब उनसे नजर कैसे मिलायेगा॥
तू उनके चेहरे की वजह, अपना चेहरा गुलाबी पायेगा ॥1॥

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नव वर्ष

नव वर्ष छंद

नव लय नव वलय नव निश्चय तय करें।
वलय उत्तम लय निश्चय सब सुखमय करें॥
नव उमंग नव तरंग नव विविध रंग हों।
न दुख से न कष्ट से न जिंदगी से जंग हों॥
रहे नही कोई कमी होवे नाश सकल कमियाँ ।
पाप राह पर चलती नही मिले खोई दुनियाँ ॥

कवि – अमित चन्द्रवंशी