मार्कशीट के नंबरों से क्या तू मेरा कद आंकेगा ।
पढ़ाई में नहीं पर स्कूल में मेरा जलवा पाएगा।।
नंबरों का क्या है ऊपर नीचे होते रहते हैं जनाब,
जिंदगी के सफर में मेरा हुनर ऊंचाई दिलाएगा।।
कवि – अमित चन्द्रवंशी
मार्कशीट के नंबरों से क्या तू मेरा कद आंकेगा ।
पढ़ाई में नहीं पर स्कूल में मेरा जलवा पाएगा।।
नंबरों का क्या है ऊपर नीचे होते रहते हैं जनाब,
जिंदगी के सफर में मेरा हुनर ऊंचाई दिलाएगा।।
कवि – अमित चन्द्रवंशी
केवल ‘ट्राय’ के लिए उसे होंठों से लगाना।
और चाहते हुए भी फिर उसे ‘बाय’ न कह पाना॥
या वो शौक ही शौक में पहला कश लगाना।
और अब उस शौक के शोक में तड़फड़ाना।
सब याद है मुझे इस तरह अपना बजूद गंवाना।
मुझे सब याद है कि किस तरह खुद को मिटाया।
और कैसे धीमे धीमे उस दुखदायी मौत को बुलाया ॥
हम उसे पीये और वो हमें पीये, इस तरह किया छलनी सीना।
जारी रखा ‘स्टेटस’ फिल्मी,और बीमारियों के संग जीना।
बड़ी शान से सिगरेट या तम्बाकू पान करके।
बात हो जाती है अपनी कुछ निराली सबसे हटके।
वो आज की लड़कियाँ भी कहाँ हैं भला पीछे।
पार्टियों की मौज मस्ती में वो भी कश खीचें।
एक अलग ही अंदाज है अमीरी दिखाने का।
इलाज कराके भी फिर दर्द भुगतने का।
वो बंदा ही क्या जो तम्बाकू न पीये।
और जवानी से पहले ही बुढ़ापा न जीये।
वो बात ही अलग उसके लिए तड़पना।
कि उसके बिना मुश्किल हो कुछ करना।
वो गले का सूखना कहीं भी न मन लगना।
और नित्यकर्मों के भी न हो सकना।
वो सिगरेट में आग लगा के, फेफड़ों को जलाना।
और धुएँ के छल्ले उड़ा के, पैसों को उड़ाना।
कश लगाकर वो जहर हवा में घोलना।
और अपने करीबियों को बीमारियों की तरफ धकेलना।
कोई गम हो भूलाना या कोई जश्न मनाना।
सिगरेट शराब के बिन अधूरा महफिल जमाना।
“धाकड़ अमित ” ये नशा है बड़ी नाश करने वाली बला।
इससे बचकर रहने में ही है बड़ा भला।।
कवि – अमित चंद्रवंशी
दोस्ती ही तो है जो जिंदगी के एक रंग में भी कई रंग दिखाती है।
वरना बिना दोस्तों के रंगीन जिंदगी भी बेरंग सी नजर आती है॥
सच्ची दोस्ती से बढ़कर इस दुनिया में कुछ कहाँ है।
एक भी दोस्त अगर सच्चा है तो अपना सारा जहाँ है॥
जो दोस्त साथ हो तो डर किस उड़ती चिड़िया का नाम है।
मस्त मस्ती में बस हर दम खिलखिलाने का तब काम है॥
मैं तब तक नादान था कि जब तक ये जमाना नादान था।
पर यूँ ही अचानक हिंसक बन जाना न मेरा कोई अरमान था॥
द्वारा – अमित चन्द्रवंशी
श्री रामजी जिस दिन लौटे थे अयोध्या नगरी ।
जनता खुशी से नाच उठी थी उस पल सबरी ॥
नगर-नगर ग्राम-ग्राम हर घर-घर दीप जला ।
खुशी दौर नभ थल जल पाताल धरा स्वर्ग चला॥
उठा हर घर-घर चमक बुराई सारी मिट गई ।
नव रंग अब छाने लगा धरा मंगलमय भई ॥
देव नर मुनि जीव-जड़ सब झूम खूबहि उठही ।
बाल -युवा- वृद्ध -पंछी सब प्रभु गुणगान गावही ॥
तरु -फूल -फल- पानी- शाखा -जड़ प्रभु नाम जपही ।
मधुर स्वर हर कण- कण से पल- पल फूटन लगही ॥
शीतल सुगंधित मंद पवन सुख रस इत-उत बहावहीं।
नभ घन वसन पहन दे शीतलता छाया अति बनावहीं॥
हर घर -घर गली -गली फैले दीप दीप दीपावली ।
रौनकता -चहलता -नवीनता उमंग हवा जगह- जगह चली ॥
आनंदमय -मंगलमय -रसमय पावन वातावरण दिशि- दिशि समाही ।
दिवस कार्तिक मास अमावस्या अमित खुशहाली प्रकाश देत गवाही ॥
कवि – अमित चन्द्रवंशी
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जन्मदिवस शुभ अवसर पर ,
लो खुशियाँ उपहार में हर ।
आप जियो साल हजार ,
नाम हो आपका अपार ।
सबके आशीष पाओ सर,
आपसे दुखी न होय कोई नर।
खुशियों से भरे घर संसार ,
न हो जिंदगी में आपकी हार।
बनो आप इतने बड़े फनकार,
कामयाबी कदम चूमे हर बार।
बन महान छोड़ ऐसा असर ,
आप हो जाओ सदा अमर।
‘धाकड़ अमित‘ की यही पुकार ,
प्रभु कृपा रहे आप पर बरकरार।
कवि – अमित चन्द्रवंशी
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