मुक्तक :
जैसे पपीहा* रहे प्यासा उस वक्त के लिए।
जैसे दुश्मन रहे प्यासा उस रक्त के लिए॥
वैसे ही धन प्यास ऐसी कि बुझाये से भी न बुझे;
जैसे नेता खड़ा पिपासा उस तख्त के लिए॥
*पपीहा : एक पक्षी होता है जिसे चातक के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यह केवल स्वाती नक्षत्र में होने वाली वर्षा का ही जल पीता है ।
कवि – अमित चन्द्रवंशी
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