व्यक्तियों के समूह को मिलाकर एक परिवार बनता है और उन परिवारों से मिलकर एक समाज बनता है और उन समाजों से मिलकर एक राज्य बनता है और उन राज्यों के मिलने से एक राष्ट्र बनता है और उन राष्ट्रों के मिलने से एक विश्व का निर्माण होता है।
समाज उन व्यक्तियों के समूह को दर्शाता है जो एक साथ रहते हैं अर्थात् समाज को यदि परिभाषित करने की कोशिश की जाए तो इससे यह आशय निकलेगा कि एक दल या समुदाय जो किसी विशेष स्थान पर रहता है (एक स्थान पर रहने वाले लोगों का वर्ग या समुदाय है) और अपने आप में एक संस्कृति को संजोये रखता है।
समाज तो वो एक माला है जिसके परिवार रूपी मनोहर मोती हैं और परिवार के सदस्य उस मोती की सुंदरता है।
जब एक समूह एक स्थान पर रहता है तब निश्चित है कि उनको यदि एक साथ रहना है तो उनको हर एक भेदभाव, ऊँच-नीच, राग-द्वेष से दूर रहना होगा तभी एक आदर्श समाज का निर्माण हो सकता है जो एक साथ मिलकर चल सकें। जिसमें ऊँच-नीच न हो अर्थात् समानता हो ताकि सभी बिना किसी भेदभाव के प्रेम से रह सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि समाज में कुरीतियाँ न हों। कुरीतियाँ समाज को बिखेर देंती हैं और समाज कभी पनप नहीं पाता है।कुरीतियाँ समाज के लिए एक अभिशाप की तरह हैं। हमें वह समाज चाहिए जो इन सभी रोग रूपी विकारों से मुक्त हो और जिसकी परिकल्पना कई विचारकों ने की है।
पर आज हम देखते हैं कि एक समाज को किसी जाति विशेष से जोड़ दिया गया। परन्तु वास्तव में समाज तो ऊंच-नीच, भेदभाव, राग-द्वेष से बहुत दूर था। क्योंकि वह समुदाय एक दूसरे को समझता था और एक दूसरे के सुख दुख में साथ देता था । वह अपने साथ रहने वालों को समझते थे। समाज एक ऐसे लोगों को दल होता था जो उसमें रहने वाले हर एक व्यक्ति को अपना समझता था। तब आप समझ सकते हैं कि वहाँ किस तरह का खुशनुमा वातावरण निर्मित होता होगा । क्योंकि दुख एक व्यक्ति के लिए नहीं होता था वह सब में बँट जाता था। आप जानते ही होंगे कि जब आपके साथ आपके दुख में कोई खड़ा नहीं होता तब आपकी स्थिति क्या होती है कदाचित आप अपने जीवित रहने का कारण भी नहीं ढूँढ पाएँगे। पर यदि आपके साथ कई लोग हो तो निश्चिय ही आप हजारों साल जीना चाहोगे ।
परन्तु आज जब हम समाज को देखेंगे तो वो एक छोटी सी काॅलोनी में रूपांतरित हो गया । जहाँ एक दूसरे से लोग अच्छी तरीके से जानते भी नहीं।एक दूसरे की जानने की बात तो छोड़िए, आज के आधुनिक युग में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि वो ये भी नहीं जान पाते कि उनका पड़ोसी कौन है।;)
आशय यही है कि जिस समाज को कभी जानते थे वो आज पूरी तरीके से विलुप्त हो गया है या सच मानें तो हमने कभी समाज को जाना ही नहीं।
आज एकांकी जीवन में समाज की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि एकांकीपन निश्चित ही कई समस्याओं को जन्म देता है आपको कई विषाद(उदासीनता), तनाव और अन्य मानसिक व दैहिक समस्याएँ अनायास ही घेर लेती हैं। जब आप परिवार के मुखिया हो तब निश्चिय ही ये समस्याएँ तब और ज्यादा घेर लेती हैं। तब आपको समाज की महत्ता समझ में आती है ।
अतः समाज का महत्व जितना भी बताए जाए उतना ही कम है।
लेखक – अमित चन्द्रवंशी
MArathi mai chaiye thaa
LikeLike
ek aadarsh parivar bina aadarsh samaj ki kalpna ki ja sakti hai
LikeLike
समाज के आदर्श रुप को समझना ज़रूरी है. बहुत अच्छा.
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद रेखा जी…
LikeLiked by 1 person
सराहनीय लेख👍👍
LikeLike
धन्यवाद अजय जी…
LikeLiked by 1 person
सच कहा आपने———आज लोग समाज से इतने दूर जा बसे हैं जितना ईश्वर के पास होते हुए भी दूर हैं——-।
LikeLiked by 1 person
बहुत अच्छा उदाहरण दिया आपने मधुसुदन जी…
LikeLike
धन्यवाद अमित जी—
LikeLiked by 1 person
स्वागतम्
LikeLike