आज के समय में हिन्दी भाषा की हालत इतनी खराब हो गई है कि यदि किसी हिन्दी मातृभाषी से कभी हिन्दी लिखवाई जाए तो बहुत ही कम लोग शुद्ध हिन्दी लिख पायेंगे। शुद्ध लिखने की बात भी छोड़ दीजिए वो हिन्दी भी लिखने में बगले झाँकते दिखेंगे।तब स्वामी विवेकानंद जी की एक यात्रा का वृतांत याद आता है।
यह किस्सा उस समय का है जब स्वामीजी देश यात्रा पर थे। वहां उनके स्वागत के लिए आए कुछ लोगों ने स्वामी विवेकानंद से हाथ मिलाने के लिए उनकी तरफ हाथ बढ़ाया और इंग्लिश(English) में ‘हैलो(Hello)” कहा।
जवाब में स्वामीजी ने दोनों हाथ जोड़कर उन महानुभावों को नमस्ते कहा।उन लोगों को लगा कि संभवत: स्वामीजी को अंग्रेजी नहीं आती इसलिए वे हिंदी में नमस्ते कहकर हाथ जोड़ने की मुद्रा बना रहे हैं। यह सोच उनमें से एक ने हिंदी में पूछा- “आप कैसे हैं?”
तब स्वामीजी ने कहा “आई एम फाइन, थैंक यू (I am fine, thank you)”।
स्वामीजी का जवाब अंग्रेजी में सुन वे लोग आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने विनम्रतापूर्वक पूछ लिया कि “स्वामीजी जब हमने आपसे अंग्रेजी में बात की तो आपने उत्तर हिंदी में दिया, लेकिन जब हमने हिंदी में बात की तो आप अंग्रेजी में बोले, ऐसा क्यों?”
स्वामीजी मुस्कराए और बोले-“जब आप अपनी माँ (अंग्रेजी) का सम्मान कर रहे थे, तब मैं अपनी माँ (हिंदी) का सम्मान कर रहा था, किंतु जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने भी विनम्रतापूर्वक आपकी माँ का सम्मान किया।”
उनके अनूठे जवाब से विदेशी चकित रह गए। वे इस घटना के पहले तक अंग्रेजी को विश्व की श्रेष्ठ भाषा मानते थे, किंतु इसके बाद न सिर्फ उनका भ्रम दूर हुआ बल्कि वे अन्य भाषाओं को भी पर्याप्त सम्मान देने लगे।
पर अब समस्या यह है कि आज एक हिन्दी भाषी को भी हिन्दी नहीं आती और जब वो अंग्रेजी में बात करेगा तो हम उससे किस भाषा में बात करेंगे या उसकी किस माँ का सम्मान करेंगे? हमारी हिन्दी भाषा की इस दयनीय हालत को देखते हुए केवल एक यह ही विचार आता है कि हिन्दी भाषी लोगों को अपनी मातृभाषा से न ही प्यार है और न ही वो हिन्दी बोलना चाहते हैं । जहाँ तक ऐसा भी प्रतीत होता है कि उन्हें हिन्दी में बोलने और लिखने में शर्म महसूस होती है। मेरे इतने कठोर शब्दों के लिए में उन से क्षमा चाहता हूँ जिनका हृदय इस कथन को पढ़कर विदीर्ण हो गया है।
और अन्य बात कहने का अब कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता इसलिए अभी मैं अपने लेख को यहीं विराम देता हूँ ।
जय हिन्द, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान
लेखक – अमित चन्द्रवंशी
हम मातृभाषा का अपमान नहीं होने दे सकते, इसलिये जब हम बंगलौर गये तो वहाँ हिंदी बोलने पर मना करने पर मेरे से खूब झगड़े परहमने भी सबको हिंदी ही बुलवायी।
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बहुत ही उत्कृष्ट काम किया है आपने।
आपके कार्य को सलाम…
सचमुच में सराहनीय…
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धन्य वाद
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🙂
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अमित विचार लिखते रहें , इससे कभी न कभी जनता जागरुक होगी
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आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद…
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आपके प्रोत्साहन के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद…
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बहुत खूब…मेरा भी यही मानना है इसलिए मैंने जब ये ब्लॉग शुरू किया तभी ये सोच लिया था मैंने हिंदी में हीं लिखूँगी… अमित सच में आप के विचारों से मेरे विचार मेल खाते हैं!! Keep blogging dear!!
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कोटि-कोटि धन्यवाद ज्योति जी, मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई कि आप ने हिन्दी के बारे में सोचा। मैं आशा करता हूँ आप अपने संकल्प पर दृढ़ रहें और अंग्रेजी जानने के मिथ्या अभिमान को दूर रखें।
और हिन्दी को जीवांत बनाए रखे…
पुनः कोटि-कोटि धन्यवाद…
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